Monetization : पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने का एक तरीका
रायपुर/नवप्रदेश। Monetization : AICC के महासचिव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजय माकन शुक्रवार को छत्तीसगढ़ पहुंचे। मोदी सरकार द्वारा देश में लाई जा रही नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना के खिलाफ कांग्रेस लामबंद है। इसी योजना के खिलाफ राजधानी रायपुर के कांग्रेस मुख्यालय में अजय माकन, सीएम भूपेश बघेल, चंदन यादव समेत कई वरिष्ठ नेता शामिल रहे।
कांग्रेस के महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (National Monetization Pipeline) को लेकर मोदी सरकार पर हमला किया है। जनता की कमाई से बनी संपत्तियों की ’मेगा डिस्काउंट सेल’ मोदी सरकार ने लगाई है। इस गुपचुप निर्णय और अचानक घोषणा से सरकार की नीयत पर संदेह बढ़ गया है।
माकन की माने तो मोदी सरकार जनता की कमाई से पिछले 60 साल में बनाए गए सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने पर आमादा है। सबसे चौंकाने वाली और संदेह में डालने वाली बात यह है कि यह सभी कुछ बिना किसी को बताये तय किया गया। इसके बाद इस निर्णय की घोषणा भी आनन फानन में की गई। यही कारण है कि केंद्र सरकार की नीयत पर शक गहराता जा रहा है।
अजय माकन ने चुटकी लेते हुए कहा कि मोदी सरकार ने विकास के नाम पर दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, एक का नाम है नोटबंदी (Demonetization) और दूसरे का मुद्रीकरण (Monetization), दोनों का व्यवहार एक जैसा है। Demonetization से देश के गरीबों, छोटे कारोबारियों को लूटा गया Monetization से देश की विरासत को लूटा जा रहा है, और दोनों ही चंद पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए किए गए काम हैं।
तुलनात्मक अवलोकन में NDA का रिकॉर्ड खराब
NDA की तुलना अगर UPA से ढांचागत आधार के सृजन को लेकर की जाए तो यूपीए के मुकाबले एनडीए का रिकॉर्ड काफी खराब है। पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर जो भी भाषण दिए हैं, उनका मुख्य केंद्र मुख्य रूप से ढांचागत आधार ही रहा है। लेकिन NDA सरकार की इस बिंदु पर अगर UPA से तुलना की जाए तो NDA का रिकॉर्ड खराब है।
” 12वीं योजना योजना काल के दौरान ढांचागत आधार में निवेश को 36 लाख करोड़ रुपए समग्रित पर आंका गया। यह जीडीपी का 5.8 प्रतिशत औसत है। वित्तीय वर्ष 2018 और 2019 में यह अनुमान 10 लाख करोड़ पर आ गया।” इसका मुख्य उद्देश्य कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान करना है।
कंपनियों का होगा एकाधिकार
माकन ने कहा कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण से बाजार में चुनिंदा कंपनियों की मनमर्जी कायम हो जाएगी। सरकार भले कहती रहेगी की निगरानी के सौ तरह के उपाय हैं, उसके लिए नियामक संस्थाएं हैं, लेकिन सच इसके विपरीत है। उन्होंने सीमेंट कंपनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां पर दो तीन कंपनियों का एकाधिकार आज बरकरार है। वही बाजार में भाव को तय करते हैं,जिससे सरकार के तमाम नियामक प्राधिकरण और मंत्रालय उनके सामने असहाय नजर आते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण और गठजोड़ बढ़ेगा।
इस तरह की स्थिति इंग्लैंड बैंकिंग क्षेत्र में देख चुका है। इस मामले में हम अमेरिका से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। जो फेसबुक, गूगल और अमेजॉन जैसी संस्थाओं पर नियंत्रण के लिए विभिन्न तरह के नियम और कानून बना रहा है। इसमें उनकी संसद और सभी नेता एक साथ नजर आते हैं। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों का बाजार पर वहां एकाधिकार है। भारत में मोदी सरकार कुछ चुनिंदा कंपनियों को एकाधिकार का रास्ता स्वयं बनाकर दे रही है। अगर सरकार की बात मानी भी जाए कि किसी क्षेत्र में दो या तीन कंपनियां होंगी,लेकिन उसके बाद भी उनके बीच गठजोड़ को कैसे सरकार रोक पाएगी।
सांकेतिक मौद्रिक मूल्य सरकार का अमूल्यन है
सरकार ने 12 मंत्रालयों के 20 परिसंपत्तियों का वर्गीकरण करते हुए इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए चिन्हित किया है। इनका सांकेतिक मौद्रिक मूल्य सरकार ने 6 लाख करोड रुपए दर्शाया है। इन परिसंपत्तियों के निर्माण में पिछले 70 साल के दौरान अभूतपूर्व मेहनत, बुद्धि और निवेश लगाया गया है। यह सभी परिसंपत्तियों अमूल्य हैं। लेकिन इन सभी परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव देने की तैयारी की जा रही है, जिसे इन परिसंपत्तियों का मूल्य कभी नहीं माना जा सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि इन परिसंपत्तियों को किराए के भाव बेचने का कार्य किया जा रहा है। इसकी वजह यह है कि बहुत सारे परिसंपत्तियों के लिए, प्रत्यक्ष तौर पर (upfront) इस समय प्राइवेट कंपनी द्वारा पूरी लागत का कुछ ही हिस्सा दिया जाएगा, जो पैसा दीर्घकाल में निवेश किया जाएगा। उसे एक तरह से सांकेतिक मौद्रिक मूल्य कहा जाना चाहिए।
Monetization से सुरक्षा में सेंध
यूपीए शासनकाल में यह निर्णय किया गया था कि रणनीतिक परिसंपत्तियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा। रेलवे लाइन, राष्ट्रीय एयरलाइन, गैस पाइपलाइन को लेकर विशेष सतर्कता रखी जाती थी। उनको लेकर हमेशा एक सुरक्षात्मक दृष्टिकोण रखा गया। युद्ध के समय सेना के आवागमन के लिए रेलवे और राष्ट्रीय एयरलाइन का अपना महत्त्व हमेशा से रहा है। ऐसे में क्या यह सही नहीं है कि सरकार ने हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी पंगु बनाने का निर्णय किया है। अगर इन रणनीतिक परिसंपत्तियों को बेच दिया जाता है तो किसी आपात स्थिति में किस तरह के हालात होंगे। इसकी कल्पना की जा सकती है।
अधिकतर परिसंपत्तियां सरकार के पास नहीं रहेंगी
सरकार बेची गई परिसंपत्तियां हमेशा सरकार के पास रहने की झूठी बात कह रही है। जब भी इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट जैसे ट्रस्ट बना कर संपत्ति बेची जाएगी तो वह कभी भी सरकार के पास नहीं रह सकती। इसके अतिरिक्त 30 से 60 साल की लीज होती है। यह भी एक तरह से संपत्ति को बेचने जैसा ही है। जब दीर्घकाल तक किसी संपत्ति पर किसी निजी निवेशक का अधिकार बन जाता है।
लेकिन दुख की बात यह है कि सरकार इनको बेचने के भाव की जगह किराए के भाव पर इतनी लंबी अवधि के लिए दे रही है। इस अवधि में एक बच्चा प्रौढ़ावस्था में पहुंच जाएगा, लेकिन उस अवधि के दौरान उस सरकारी परिसंपत्ति का कोई भी लाभ देश के नागरिक को नहीं हो पाएगा। जबकि निजी क्षेत्र उससे इस अवधि में लगातार कमाई करता रहेगा।
संघीय ढांचे पर करारी चोट
सार्वजनिक उपक्रमों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने रियायती दरों पर जमीन दी थी। जमीन या भूमि राज्यों का विषय होता है। ऐसे में विभिन्न राज्य सरकारों को भी केंद्र सरकार को भरोसे में लेना चाहिए था, लेकिन उसकी नीयत में खोट है। इसकी वजह से उसने ऐसा नहीं किया।
सूचना का अधिकार नहीं होगा प्रभावी
जिन कंपनियों को परिसंपत्तियों के संचालन के लिए बनाया जाएगा वह उन नए नियमों के तहत संचालित होंगी,जो सूचना के अधिकार या आरटीआई के दायरे में आने में दिक्कत होगी। इन कंपनियों का सृजन गुप-चुप तरीकों से किया गया जो आने वाले समय में गुप-चुप तरीके से ही संचालित होंगी और चुनिंदा औद्योगिक पूंजीपति मित्रों को ही लाभ पहुंचाने का कार्य करेंगे।
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