नई दिल्ली/नवप्रदेश। दूध में मिलावट (Adulteration of milk) को लेकर चल रही बहस (debate) में आज सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने कहा कि दूध में मिलावट के आरोपी व्यक्ति (Accused person) की न्यूनतम सजा माफ (Waive the minimum sentence) नहीं कर सकते। उन्हें दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) की धारा 433 के तहत राज्य सरकार को मिले सजा माफी के अधिकार का न्यायालय अतिक्रमण नहीं कर सकता।
खाद्य सामग्रियों के लिए विधायिका ने एक बार जो मानक तय कर दिया, उसका अनुपालन किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की न्यूनतम सजा (Waive the minimum sentence) बरकरार रखते हुए कहा कि यदि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत तय मानकों का पालन नहीं किया जाता तो आरोपी को इस आधार पर बरी नहीं किया जा सकता कि मिलावट मामूली थी।
इन अधिकारों का अतिक्रमण न तो शीर्ष अदालत (supreme court) कर सकती है, न कोई और अदालत। न्यायालय राज्य सरकार की शक्तियों को छीन नहीं सकता और उसे इस मामले में आदेश पर अमल के लिए नहीं कहा जा सकता। इसलिए हम ऐसा कोई आदेश पारित करने के पक्ष में नहीं हैं जो इस अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो।