Aaj-Bebaaq : राजनीतिक दल अपनी खोई हुई जमीन को तलाशने और खबरिया चैनल अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। क्या करें, गंदा है पर धंधा है।
अब तो कई खबरिया चैनल अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टियों के अनाधिकृत प्रवक्ता बन गए है और उनके गुप्त एजेंडे पर ही काम कर रहे हैं। नतीजतन राजनीतिक दलों और खबरिया चैनलों की बची-खुची विश्वसनीयता खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है।
यदि सब इसी तरह अपनी-अपनी ढपली पर अपना-अपना राग अलापते रहे तो बहुत जल्द इनके सामने वोटरों और दर्शकों का टोटा हो जाएगा।